व्यावसायिकता के विरुद्ध
मोटे तौर पर यह कहा जा सकता है कि वर्तमान भारतीय पत्रकारिता सामाजिक दायित्व से शून्य है। प्रकाशित सामग्री में चटखारे और चापलूसी की ही प्रमुखता होती है। यह बात खास तौर से उन पत्र-पत्रिकाओं पर लागू होती है जिनके पीछे बड़ी-बड़ी थैलियां हैं। छोटी पत्रिकाएं अभी भी जहां-तहां कुछ ...
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